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त्वाम॑ग्ने॒ पुष्क॑रा॒दध्यथ॑र्वा॒ निर॑मन्थत। मू॒र्ध्नो विश्व॑स्य वा॒घतः॑ ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām agne puṣkarād adhy atharvā nir amanthata | mūrdhno viśvasya vāghataḥ ||

पद पाठ

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। पुष्क॑रात्। अधि॑। अथ॑र्वा। निः। अ॒म॒न्थ॒त॒। मू॒र्ध्नः। विश्व॑स्य। वा॒घतः॑ ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:13 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य किस-किससे बिजुली का ग्रहण करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वन् ! जैसे (वाघतः) बुद्धिमान् जन (विश्वस्य) सम्पूर्ण जगत् के (मूर्ध्नः) ऊपर वर्त्तमान के (पुष्करात्) अन्तरिक्ष से (अधि) ऊपर अग्नि को (निः, अमन्थत) मथते हैं, वैसे (अथर्वा) अहिंसक मैं (त्वाम्) आपको प्रकाशित करता हूँ ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वान् जनो ! जैसे पदार्थविद्या के जाननेवाले जन सूर्य्य आदि के समीप से बिजुली को ग्रहण करके कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वैसे ही आप लोग भी सिद्ध करो ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कस्मात्कस्माद्विद्युत्सङ्ग्राह्येत्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने विद्वन् ! यथा वाघतो विश्वस्य मूर्ध्नः पुष्करादध्यग्निं निरमन्थत तथाऽथर्वाऽहं त्वां प्रदीपयामि ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (अग्ने) (पुष्करात्) अन्तरिक्षात् (अधि) उपरि (अथर्वा) अहिंसकः (निः) (अमन्थत) मन्थन्ति (मूर्ध्नः) उपरि वर्त्तमानस्य (विश्वस्य) सर्वस्य जगतः (वाघतः) मेधाविनः ॥१३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यथा पदार्थविद्याविदो जनाः सूर्य्यादेः सकाशाद् विद्युतं गृहीत्वा कार्य्याणि साध्नुवन्ति तथैव यूयमपि साध्नुत ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! जसे पदार्थविद्या जाणणारे लोक सूर्यापासून विद्युत ग्रहण करून कार्य सिद्ध करतात तसे तुम्हीही सिद्ध करा. ॥ १३ ॥